Making a De-carbonized and Energy-Independent India - (H)

भारत में ऊर्जा की खपत बहुत ज्यादा है; इसलिए भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल, गैस और गुणवत्ता वाले कोयले का आयात करना पड़ता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है, कि भारत 2070 तक 'नेट जीरो' कार्बन उत्सर्जक देश बनेगा, ऊर्जा में आत्मनिर्भरता हासिल करने और भारत को डीकार्बोनाइज बनाने के तकनीकी समाधान कौन से हैं? बेहतरीन आकलनों से पता चलता है, कि अगले 30-40 वर्षों तक कोयला अपने वर्तमान स्वरूप में, भारत में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बना रहेगा। लेकिन कार्बन कैप्चर, स्टोरेज और इसके उपयोग की नई कोशिशें जारी हैं, इस दिशा में आईआईटी दिल्ली इसके लिए कुछ तकनीकों का विकास करने में सबसे आगे है। कार्बन डाई-ऑक्साइड रहित ऊर्जा का स्रोत, परमाणु ऊर्जा है और भारत ने दस रिएक्टरों के निर्माण की घोषणा की है। पवन, सौर और ज्वार जैसी ऊर्जा के नवीकरणीय रूपों का पूर्ण उपयोग भी, भारत की ऊर्जा मांग का केवल पच्चीस प्रतिशत ही पूरा कर सकता है। हमें बाकी की पूर्ति, परमाणु ऊर्जा या कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के साथ कोयला गैसीकरण से करनी होगी। प्रोफेसर सोंडे पहले बीएआरसी यानी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई में इंजीनियर रहे हैं, फिर वे निजी क्षेत्र में चले गए और एनटीपीसी यानी राष्‍ट्रीय ताप बिजली निगम में काफी समय बिताया। प्रोफेसर सोंडे भारत की ऊर्जा के, नीति निर्धारण में एक प्रमुख विशेषज्ञ हैं। भारत अब कोयले से मेथनॉल, कोयले से गैसीकरण और कोयले से हाइड्रोजन जैसी तकनीकों के जरिए, कोयले को अधिकतम कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में निवेश कर रहा है। भारत के लिए कोयला वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोयला संसाधन 300 वर्षों तक उपयोग किया जा सकता है, लेकिन हमें कोयले से ऊर्जा का एक स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल स्वरूप विकसित करना होगा। वैज्ञानिकों का कहना है, कि भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, स्वच्छ कोयला ऊर्जा, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा के बेहतरीन तालमेल हासिल होगी। हमारे देश के लिए, स्थानीय अनुसंधान और विकास के जरिए एक कार्बनमुक्त भारतीय अर्थव्यवस्था का निर्माण बेहद जरूरी है।

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