The Changing face of Agriculture in Kashmir (H)

द चेंजिंग फेस ऑफ एग्रीकल्चर इन कश्मीर कहा जाता है, कि सब क्षेत्रों में देरी चल सकती है, लेकिन कृषि में नहीं। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख कृषि प्रधान अर्थव्यवस्थाओं वाले क्षेत्र हैं, लेकिन इक्कीसवीं सदी में कृषि प्रणालियां थोड़ी दबाव में हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में बदलाव जरूरी हो गया है। यहां सबसे बड़ा मुद्दा है, भूमि जोत का । शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्रीनगर के कुलपति डॉ. जे पी शर्मा कहते हैं, कि आज कश्मीर में जोत भूमि वास्तव में बहुत छोटी हो गई हैं, पर उनका ये भी मानना है, कि 'किसान-उत्पादक संगठनों' के गठन से कुछ समस्याओं को दूर करने में मदद मिल सकती है। डॉ शर्मा का दावा है, कि इन बेहद खूबसूरत क्षेत्रों को खासकर बागवानी के लिए जैविक उत्पादों के एक केंद्र के रूप में उभरने के लिए, कृषि उद्यमिता और कृषि-व्यवसायों की एक नई क्रांति शुरू करनी होगी। भारत में सेब उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की क्षमता बहुत ज्यादा है और आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने से इसमें काफी मदद भी मिल रही है। केसर की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रमाणन अभियान ने केसर उत्पादकों को बेहतर मूल्य दिलाने में मदद की है और उपभोक्ताओं को बिना मिलावट वाले उत्पाद सुनिश्चित हुए हैं। लघु उद्योग भी जैविक शहद के उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। कुल मिलाकर डॉ. शर्मा का जोर इस बात पर है, कि कश्मीर हिमालय, कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति का गवाह बनने के लिए तैयार है, जिसमें कृषि-व्यवसाय भारी मुनाफे का सौदा बन सकता है।

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