Saving Vultures in India (H)

गिद्ध प्रकृति के सफाई कर्मचारी हैं, और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग हैं, लेकिन पिछले दो दशकों में, वो अचानक मरने लगे और काफी समय तक यह एक रहस्य ही बना रहा, कि वे क्यों मर रहे हैं? फिर पता चला कि वो फार्मा केमिकल डाइक्लोफिनेक के जहर से मर रहे थे। इन गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक बड़ा प्रयास किया गया और पिंजौर में संरक्षित प्रजनन केंद्र शुरू किया गया। जिप्स गिद्धों को पशुओं के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा डाइक्लोफिनेक के उपयोग के कारण विलुप्त होने का सामना करना पड़ा, इस दवा से प्रभावित शवों को खाने से इनकी बेतहाशा मृत्यु होने लगी। इस दवा के खिलाफ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के प्रयासों से, देश में, भारत सरकार ने 2006 में पशु चिकित्सा उपयोग में इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया। बीएनएचएस के वैज्ञानिकों ने भारत सरकार की मदद से सफलता की एक कहानी लिखी है। जिप्स गिद्धों को ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड वल्चर; जिप्स बेंगलेंसिस, लॉन्ग बिल्लड वल्चर; जिप्स इंडिकस और स्लेंडर बिल्लड वल्चर; जिप्स टेनुरोस्ट्रिस के नाम से जाना जाता है। जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र, पिंजौर, हरियाणा गिद्धों की वापसी को देखने के लिए एक बेहतरीन जगह है। इस केन्द्र ने बंदी पैदा हुए गिद्धों को फिर से स्वतंत्र बनाने में मदद की है और गिद्धों को विलुप्त होने से बचाया है।

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