12 September 2021 - Scientific Intervention For Coastal Protection (H)

वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, तटीय पर्यावरण पर पड़ना भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत और उसके कई द्वीपों की तटरेखा 7500 किलोमीटर से अधिक है। ये तटीय क्षेत्र न केवल लगभग 17 करोड़ लोगों का निवास है, बल्कि असंख्य वनस्पति और जीवों, तथा अद्वितीय समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता का केन्द्र भी है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और समुद्री स्तर बढ़ने से भारत की तटरेखा अब बहुत ज्यादा संवेदनशील हो गई है। एक अनुमान के मुताबिक, हमने पिछले कुछ दशकों में लगभग 235 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र खो दिया है। विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के विज्ञान इस एपिसोड में हम आपके लिए डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरमेंट ऑफ तमिलनाडु गर्वनमेंट और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के डिपार्टमेंट ऑफ ओशियन इंजीनियरिंग के द्वारा दो अनूठी पहल सामने लाए हैं, जिसमें ये संस्थान भारत के समुद्र तटों और द्वीपों की रक्षा के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता ले रहे हैं। इनमें से पहला,चेन्नई के उत्तर में समुद्र तट से लगा हुआ इलाका है, जहां बहुत सी जमीन समुद्र ने निगल ली है। इस एपिसोड में हम ये भी देखेंगे, कि कैसे हमारे वैज्ञानिक संस्थान मन्नार की खाड़ी में डूबते वान द्वीप के पास, कृत्रिम रीफ मॉड्यूल को नियोजित कर रहे हैं, ताकि लहरों और धाराओं के प्रवाह से इस इलाके की रक्षा की जा सके तथा नाजुक प्रवाल भित्तियों को भी सुरक्षा प्रदान की जा सके। जलवायु परिवर्तन के महत्व को समझने और इसके प्रभावों को जल्दी और कुशलता से कम करने का कार्य आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है। तो चलिए शुरू करते हैं अपना ये आत्मनिर्भरता का सफर।

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