Molecular Ecology of Tigers - (H)

भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ का, प्राकृतिक क्षेत्र की परिस्थितियों में काफी अध्ययन किया गया है, लेकिन बहुत कम वैज्ञानिकों ने कभी 'बाघों की आणविक पारिस्थितिकी' का अध्ययन करने की कोशिश की है। डॉ. उमा रामकृष्णन बाघों की आबादी का अध्ययन करती हैं, लेकिन बाघों की जैविक आबादी को समझने के लिए, वे डीएनए और मॉलिक्यूलर सिगनेचर का उपयोग करती हैं। इस तरह के आणविक अध्ययन, बाघ के बालों और स्कैट के नमूनों के इस्तेमाल से किए जाते हैं। आधुनिक जैविक तकनीकों से यह समझने की कोशिश की जाती है, कि क्या इनमें अंत: प्रजनन हुआ है, या ये आदमखोर हैं, या फिर किसी मवेशी को उठाने में शामिल रहे हैं? मॉलिक्यूलर सिगनेचर बाघों की सटीक जनसंख्या और विभाजन के विश्लेषण का आकलन करने में भी मदद करते हैं। डॉ. उमा ने आणविक स्तर पर कृंतकों, चमगादड़ों और पक्षियों का भी अध्ययन किया है और आणविक तकनीकों के माध्यम से बाघों को बचाने का काम भी किया है। वे आणविक उपकरणों का उपयोग करके, चमगादड़ों की आबादी और यहां तक ​​कि जंगली हाथियों की आबादी की भी खोज करती है। वे मानव और वनों के पारस्परिक अंतरसंबंधों को जानने का प्रयास करती हैं। मानव और जंगली जानवरों के साथ रहने या उनके आपसी संघर्ष से, निपाह और कोरोना वायरस जैसी नई बीमारियां कैसे पैदा हो सकती हैं? यह भी उनकी इस अनूठी प्रयोगशाला में शोध का एक हिस्सा है। भविष्य की महामारियों के प्रति, भारत को स्वस्थ और सतर्क रखने के लिए, ये उनका सच्चा प्रयास है।

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