Indian Defence Scientists Fight Covid-19 (H)

वे परमाणु बम, मिसाइल, पनडुब्बियां, लड़ाकू विमान बनाने और अंतरिक्ष में तैरते उपग्रहों को गिराने के लिए बेहतर जाने जाते हैं और इस समय जब उन्हें अवसर मिला है, तो उन्होंने कोविड -19 से लड़कर भारत के नागरिकों का जीवन बचाने में भी बड़ा योगदान दिया है। भारत की सीमाओं को सुरक्षित बनाने में योगदान देने वाले इन रक्षा वैज्ञानिकों ने, पिछले एक साल में नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ इस नए युद्ध को जीतने के लिए भारत को 50 से अधिक विभिन्न जीवन रक्षक तकनीकें दी हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक और इंजीनियरों ने भारत की पहली एंटी-कोविड -19 दवा हमें उपलब्ध करवाई है, जिसे 2डीजी कहा जाता है, ये दवा रोगी की ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम करती है। महामारी की शुरुआत में जब बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ था, तब डीआरडीओ ने ही देश को मेड इन इंडिया वेंटिलेटर, एन-95 मास्क और पीपीई किट भी प्रदान की थी। कोविड-19 रोगियों की संख्या बेतहाशा बढ़ने पर, अधिदेश परे जाकर डीआरडीओ ने भारत के कई शहरों में अस्पतालों की स्थापना की। कोरोना की दूसरी क्रूर लहर के दौरान जब ऑक्सीजन की आपूर्ति सीमित थी, तब डीआरडीओ ने भारत के लड़ाकू विमान तेजस के लिए बने ऑक्सीजन जनरेटर में बदलाव करके, उस तकनीक से अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति की। लोगों का मानना है, कि यह सब डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ जी सतीश रेड्डी के नेतृत्व का कमाल है, जिससे ऐसे नाजुक मौकों पर इतने महत्वपूर्ण कारनामों को अंजाम दिया गया। डीआरडीओ भारत का जीवन रक्षक है।

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