Giving a New Shine to Kashmir Apples (H)

इस एपिसोड के माध्यम से हम कुछ ताजे और रसीले सेबों का जायका लेंगे। भारत में होने वाले सेबों का 80 प्रतिशत सालाना उत्पादन कश्मीर करता है। कश्मीर में हर वर्ष लगभग 20 लाख टन सेब पैदा करता है। सेब उद्योग 9000 करोड़ रुपये से अधिक का है। सेब कश्मीर में बाहर से लाया गया फल है और पारंपरिक बगीचों में इसकी पैदावार कम होती है। आधुनिक विज्ञान की सहायता से, अब घाटी में ज्यादा उपज देने वाली किस्मों को उगाया जा रहा है। पुरानी 'अमरी' और 'डिलिशस' किस्मों से गाला मस्त, रेड चीफ; सुपर चीफ; गाला रेडलम और रेड वेलॉक्स जैसी किस्मों का रास्ता प्रशस्त हुआ है। नई किस्मों में एक मजबूत रूट स्टॉक का उपयोग किया जाता है। जिस पर इन नई किस्मों को कड़ी मेहनत से तैयार किया जाता है। ज्यादा उपज देने वाली एम-9 जैसी किस्में रूटस्टॉक की ही देन हैं और इनकी उपज 4-5 गुना अधिक है। हाई डेंसिटी और बौनी किस्मों का रोपण किसानों को बहुत अधिक उपज दे रहा है। नई किस्में ऐसी उपज देती हैं, जो 4-5 महीनों तक फलती रहती हैं, इससे किसान ज्यादा समय तक उपज बेच सकता है और बूम बस्ट साइकल से बच सकता है। यहां तक ​​​कि पुरानी किस्मों के जर्मप्लाज्म का संरक्षण हो रहा है, ताकि कश्मीर की देशी किस्मों के स्थायित्व का महत्व भी बना रहे। बौनी किस्में ओलावृष्टि का सामना भी कर सकती हैं। कई किसान अपने सेब के बागों के साथ-साथ जैविक खेती और वर्मी कम्पोस्ट को भी अपना रहे हैं, इससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। सेब पर किये जा रहे सभी प्रयास बागवानी उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं। फिलहाल भारत 30 करोड़ डॉलर मूल्य के सेब न्यूजीलैंड और अमेरिका से आयात करता है। नए हाई डेंसिटी वाले सेब के बाग, बागवानी को कश्मीर के लिए नई मेगा नकदी फसल के केंद्र के रूप में परिवर्तित कर रहे हैं।

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