ISRO: India's Space Journey Part-2 (H)

इसरो पर हमारी इस विशेष श्रृंखला के, इस एपिसोड में हम 1980 और उसके बाद के रोमांचक दशक पर एक नज़र डालेंगे। 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा से लेकर, 2014 में मंगलयान मिशन के तहत, अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने तक, भारत ने इसरो द्वारा हासिल की गई कई उपलब्धियों को देखा है। इन दोनों ऐतिहासिक घटनाओं के बीच भारत ने, संचार और मौसम निगरानी उद्देश्यों के लिए, पृथ्वी की कक्षा में 15 से अधिक इन्सैट उपग्रहों के, एक समूह को स्थापित करने में क्षमता निर्माण हासिल करके बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इसरो ने कई लागत प्रभावी और विश्वसनीय उपग्रह प्रक्षेपण भी प्रणालियां भी विकसित की हैं, जिनमें सुदृड़ प्रक्षेपण क्षमता और प्रौद्योगिकियां शामिल हैं, जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष में पहुंच बनाने वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल कर दिया है। जिसमें 15 फरवरी 2017 को इसरो के पीएसएलवी यानी ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन, सी-37 ने एक ही मिशन पर 104 उपग्रहों को, कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। इसरो का ट्रैक रिकॉर्ड इसकी सफलता खुद बयां करता है - पीएसएलवी, जीएसएलवी और चंद्रयान, मंगलयान जैसे मिशनों की सफलता ने , भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और इसके कई अनुप्रयोगों के मामले में हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाकर मजबूती प्रदान की है और सशक्त बनाया है। भारत अब संचार, प्रसारण, नेविगेशन और मौसम प्रणाली जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर है। हम कई अंतरिक्ष अनुप्रयोगों और महत्वपूर्ण रूप से उपग्रह प्रक्षेपण प्रणालियों की एक श्रृंखला में आत्मनिर्भर बन गए हैं, और इनका उपयोग अब कई अन्य देशों द्वारा भी किया जाता है। दरअसल इसरो ने 34 देशों के लगभग 350 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षाओं में स्थापित किया है। इसरो अब भारी लिफ्ट लॉन्च वाहनों, मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान परियोजनाओं और संभवत भविष्य में एक अंतरिक्ष स्टेशन को विकसित करने के साथ, भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। हमारा ये एपिसोड भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और इसरो को समर्पित है, इसके अलावा हम भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस एपिसोड में और भी काफी कुछ देखिए केवल इंडिया साइंस पर।

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