Women Power in Science Part 2 - (H)

विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस विशेष एपिसोड में, हम भारत की महिला वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रति, उनके योगदान पर अपनी श्रृंखला को आगे बढ़ा रहे हैं। स्वतंत्र भारत में, संस्थान निर्माता के रूप में - ये महिलाएं असाधारण रही और हम सभी के लिए सच्ची रोल मॉडल बनी - तो आज के इस एपिसोड में हम कुछ और असाधारण महिला वैज्ञानिकों के जीवन पर प्रकाश डालेंगे। डॉक्टर कमला सोहनी, भारतीय विज्ञान संस्थान में भर्ती होने वाली, उन पहली महिलाओं में से एक थीं, जिन्हें इस शर्त पर रखा गया था, कि एक महिला होने के नाते, वे अपने शोध के पहले वर्ष के दौरान, प्रोबेशन पर रहेंगी। डॉक्टर सोहनी, विज्ञान विषय में पीएचडी से सम्मानित होने वाली, पहली भारतीय महिला बनीं, उन्हें 1939 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। डॉक्टर आशिमा चटर्जी, एक रसायनविज्ञानी थीं, उन्हें 1944 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया, और उन्हें किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा, विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित होने वाली पहली महिला बनने का गौरव हासिल हुआ - उन्होंने मिर्गी-रोधी दवा आयुष-56 और स्थानीय औषधीय पौधों से, मलेरिया रोधी दवा को सफलतापूर्वक विकसित किया। डॉक्टर कमल जयसिंह रनदिवे की ऑनकोलॉजी या कैंसर अनुसंधान में अग्रणी भूमिका रही। उन्होंने कोशिका और आणविक जीव विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। डॉक्टर रनदिवे ने 1950 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी की। डॉक्टर राजेश्वरी चटर्जी, कर्नाटक की पहली महिला इंजीनियर थीं। उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की और आईआईएससी में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग से जुड़ने के लिए, भारत लौट आईं और बाद में ईसीई यानी इलेक्ट्रो-कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष बनीं। इन महिला वैज्ञानिकों और कई अन्य लोगों के दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति के कारण ही, पुरूषों के एकाधिकार वाले शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों में, लैंगिक भेदभाव का अंत हुआ । विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस एपिसोड में और भी काफी कुछ देखिए। केवल इंडिया साइंस पर।

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