Women power in Science Part-1 - (H)

विश्व स्तर पर, विज्ञान के क्षेत्र में, महिलाओं का योगदान, शायद गिने चुने विषयों में ही रहा है, और आज भी पुरुषों की तुलना में वैज्ञानिक क्षेत्रों या एसटीईएम में महिलाओं की संख्या काफी कम है। भारत में ब्रिटिश राज के दौरान और 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद के वर्षों में, विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में, महिलाओं के लिए, आगे बढ़ाने की कई चुनौतियाँ थी। उनके लिए आगे बढ़ने के अवसर केवल नाममात्र के थे - क्योंकि कुछेक उच्च शिक्षण संस्थान, जो भारत की जनसंख्या और भौगोलिक विस्तार को देखते हुए, अंग्रेजों द्वारा स्थापित गए थे। वे मुख्य रूप से पुरुषों के लिए थे। भारत में महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन न देने की पारंपरिक परिस्थितियों के कारण भी, महिलाओं के लिए स्थिति और भी ज्यादा दुश्कर थी- और वैज्ञानिक क्षेत्रों में उनको आगे बढ़ने के अवसर देना तो, बहुत ही दूर की बात थी। लेकिन भारत में, कई महिलाओं के लिए, ये ऐतिहासिक परिस्थितियाँ, कठिन होने के बावजूद असंभव नहीं रही। आज हम भारत की आजादी के 75 वर्षों का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, ऐसे में, हमें उन महिलाओं के योगदान का भी जश्न मनाना चाहिए, जिन्होंने भारत में 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में, रूढ़िवादी और दकियानूसी परंपराओं को तोड़कर विज्ञान के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया - वे विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी रही और उन्होंने भेदभाव के साथ-साथ महिलाओं को शैक्षणिक संस्थानों से दूर रखने की सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी। तो चलिए विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत की, इस दो भागों की श्रृंखला में, हम सबसे पहले कुछ महान महिलाओं के उल्लेखनीय जीवन और योगदानों पर एक नजर डालते हैं। ऐसी महिलाओं में कादम्बिनी गांगुली, भारत की पहली डॉक्टर रही, उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। वनस्पतिशास्त्री और साइटोलॉजिस्ट, ई के जानकी अम्मल रही । अन्ना मणि ने मौसम विज्ञान और भौतिकी के क्षेत्र में और डॉ. असीमा चटर्जी ने कार्बनिक रसायन और फाइटोमेडिसिन में अपना उत्कृष्ट योददान दिया था। इसके अलावा और भी काफी कुछ देखिए, विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस शो में। केवल इंडिया साइंस पर।

Related Videos