Wave of Transformation (H)

यह फिल्म उत्तर-पूर्व भारत में घराट और बी-कीपिंग नामक देशी और पारंपरिक देशज प्रौद्योगिकियों में विज्ञान द्वारा सुधार लाने की सफलता कथा पर आधारित है। परिवर्तन की लहर को महसूस करने के लिए हमारी टीम ने जनजातीय गांवों की यात्रा की और इस गाथा का दस्तावेजीकरण किया। भारत अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का धनी है। परंतु इसका मनमोहक उत्तर-पूर्व क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ एवं अप्रतिम है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र अपनी अनूठी परंपराओं और संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। यहां सदियों से बसे जनजाति समुदायों ने अपने जीवन को आसान और सुखी बनाने के लिए अनेक प्रौद्योगिकियों का विकास किया। इनमें से निजी अनुभवों एवं विवेक पर आधारित कुछ प्रौद्योगिकियां आज भी प्रचलन में है। हाल में वैज्ञानिक और तकनीकी उपायों द्वारा कुछ प्रौद्योगिकियों को बेहतर प्रदर्षन के लिए सुधारा गया है। परंतु आंखों देखी पर ही विश्वास होता है। यात्रा के पहले पड़ाव में हम अरूणाचल प्रदेश के वेस्ट कामेंग (ज्ञंउमदह) जिले के नामशु गांव में पहुंचे। यह जनजाति समुदाय की छोटी-सी बस्ती है, जहां प्रकृति और परंपराओं, दोनों को संरक्षित रखा गया है। परंपरागत घराट को मुख्य रूप से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक साधनों, जैसे लकड़ी और पत्थर से बनाया और संवारा जाता है। घराट घर को भी छप्पर, लकड़ी, पत्थर और बांस से बनाया जाता है। गांववाले अनाज की बोरियों को खुद लाद कर पिसाई के लिए लाते हैं, जो कम कुशलता के कारण धीमी प्रक्रिया है। मक्का या चावल की केवल एक बोरी की पिसाई के लिए लोग घंटों इंतजार करते हैं। आजकल पानी का बहाव भी कम हो गया है...जिससे अब यह व्यवसाय कम उत्पादकता और कम लाभ वाला हो गया है। इन सीमाओं और कमियों के बावजूद घराट आज भी ग्रामीण परिवेश का अभिन्न हिस्सा हैं। इसलिए वैज्ञानिक उपायों द्वारा इन परंपरागत संरचनाओं का उद्धार करना आवष्यक था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने उचित वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपायों से परंपरागत घराटों को उन्नत बनाने तथा सुधारने के लिए एक पहल की। इसका मुख्य उद्देश्य घराट की सकल कुशलता को बढ़ाना और ग्रामीणों विशेषरूप से महिलाओं और लड़कियों की आजीविका में सुधार करना था। उन्नत घराटों में तकनीकी रूप से कुछ आसान और नये बदलावों से सुधार लाया गया। - लकड़ी में पहिये की जगह कास्ट आयरन या माइल्ड स्टील का पहिया - पहिये में ब्लेड्स की संख्या कम की गयी, और ब्लेड्स की डिज़ाइन ऐसे बनायी गये कि पहिये को बेहतर गति मिले। - पत्थर की परंपरागत बीयरिंग्स की जगह लोहे या माइल्ड स्टील की बीयरिंग्स लगायी गईं और अन्य सहायक उपकरणों को भी बेहतर कुषलता के लिए सुधारा गया। कुल प्रभाव के रूप में प्रति मिनट चक्करों की संख्या काफी बढ़ गई और इस तरह कुशलता और उत्पादन बढ़ गया। अब पिसाई की प्रक्रिया तेज़, कुशल और सस्ती हो गई, और महिलाओं की मशक्कत कम होने से बड़ी राहत मिली। लंबे इंतजार की पीड़ा भी खत्म हो गई। अब यह सुविधा महिलाओं के बैठने-बतियाने का अड्डा बन गई है। बचे हुए समय को परिवार की देखभाल और आजीविका के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। गांवों में उन्नत घराट का प्रदर्शन वहां के जनजाति समुदायों में एक सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने में सफल रहा है। इसे पूरे उत्तर-पूर्व क्षेत्र में दोहराने की जरूरत है। स्वदेषी और परंपरगात तकनीकों की तलाष में हमने नगालैंड के कोहिमा जिले के जोतसोमा गांव में रोमांचक यात्रा की। इस क्षेत्र में मिस्टर नैनगुराज़ो की तरह कुछ अन्य गांववाले भी जंगल से शहद इकट्ठा कर अपनी आमदनी बढ़ाते हैं। ये घने जंगल में मधुमक्खी का छता ढूंढकर उसकी रखवाली करते हैं और चुपचाप आकर शहद निकालते हैं। लेकिन अब कुछ अन्य लोगों की तरह मिस्टर नैनगुराज़ो भी अपनी आजीविका सुरक्षित रखने के लिए आधुनिक मधुमक्खी पालन अपना रहे हैं। इस क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में ग्रामीण पुराने और परंपरागत तरीके से मधुमक्खी पालन करते हैं। मधुमक्खियों को जमीन के अंदर बनाये गये गड्ढों, लकड़ी या बांस के अंदर पाला जाता है और गंदी दशओं में शहद को निकाला जाता है। इसलिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने इस संभावना वाले क्षेत्र में मधुमक्खी पालन के आधुनिकीकरण के लिए एक परियोजना शुरू की। नगालैंड बी-कीपिंग एंड हनी मिशन यानी एनबीएचएम द्वारा जागरूकता, प्रशिक्षण और आवश्यक साजो-सामान देकर आधुनिक मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। उद्देश्य यह है कि शहद उत्पादन बढ़ाकर किसानों की आमदनी बढ़ायी जाए। शहद का उत्पादन बढ़ाने के लिए नेक्टर की सहायता से कंक्रीट के बक्सों वाली जगह के पास जलाशय भी बनाया गया है। कंक्रीट के मधुमक्खी बक्से स्थायी, टिकाऊ और किसी भी प्रकार के संदूषण से मुक्त सतत् शहद उत्पादन देते हैं। गांव में लोग इनका इस्तेमाल लकड़ी के बक्सों के साथ-साथ घर के पिछले हिस्से में भी कर रहे हैं। जन कल्याण में वैज्ञानिक उपायों की सफलता का यह एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें परंपराओें और संस्कृति को भी संरक्षित रखा गया है। परंतु नयी आशओं, नयी आकांक्षाओं और नयी मंजिलों के साथ लोगों को प्रसन्न और समृद्ध बनाती हमारी यह यात्रा जारी है... वाह... कितनी अद्भुत और रोमांचक रही हमारी यात्रा... हमने देखा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग से किस तरह पारंपरिक संरचनाओं को नया जीवन मिल रहा है... और इससे जनजाति समुदाय के लोगों के जीवन में सुधार आया है। उनके सामाजिक जीवन में बदलाव आया है... आजीविका के साधन बेहतर हुए हैं.. और आय में भी वृद्धि हुई है।"

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