Science Behind a Constructed Wetland To Treat Sewage - (H)

ताज़े पानी की बेहद कमी है, अगर हमने अपने द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया, तो आने वाले समय में, यह सोने से भी ज्यादा कीमती हो सकता है। पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत से अधिक भाग पानी से ढका हुआ है, लेकिन इसका केवल 2.5% भाग ही ताजा पानी है। इस एपिसोड में हम, नई दिल्ली की नीला हौज झील की यात्रा करेंगे, जहां कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड एप्रोच नामक तकनीक से, सीवेज के उपचार के पारिस्थितिक सिद्धांतों का उपयोग करके, इसके प्राचीन गौरव को फिर से बहाल किया गया है। ताजे पानी का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि धरती पर रहने वाले ज्यादातर जीव ताजे पानी पर ही निर्भर करते हैं। शहरी बस्तियाँ बहुत ज्यादा प्रदूषित पानी पैदा करती हैं, जो बहकर सीवेज में चला जाता है। सीवेज के पानी को साफ करने का एक तरीका सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का उपयोग करना है, लेकिन इस तरीके की लागत अधिक होती है और इसे चलाने के लिए बहुत सी बिजली की जरूरत भी पड़ती है। वैज्ञानिकों ने एक निर्मित आर्द्रभूमि का उपयोग करके, सीवेज के पानी को साफ करने के लिए, एक पारिस्थितिक पर्यावरण के अनुकूल समाधान विकसित किया है। यहां सीवेज के पानी को प्राकृतिक भंडारण तालाब से गुजारा जाता है, जिससे ठोस अपशिष्ट हट जाते हैं, इसके बाद पानी केवल गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके, एक चैनल के जरिये नीचे की तरफ बहता है, यहां कंकड़ और अवरोध, छोटे रैपिड्स बनाते हैं, जो पानी में हवा घोलने में मदद करते हैं। इस पानी में जैविक ऑक्सीजन की मांग को इसमें स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक ऑक्सीजन मिलाकर पूरा किया जाता है। इसके बाद यह पानी पौधों के बीच से होकर बहता है, इसे इंसानों द्वारा बनाया गया है, इसलिए इसे एक निर्मित आर्द्रभूमि कहा जाता है, इस भूमि में पौधों की जड़ें और कई प्रकार की वनस्पति, पानी को साफ करने का काम करते हैं। जलीय पौधे जैसेकि टाइफा, फ्राग्माइट्स, साल्विनिया, सेज के साथ नीले हरे शैवाल, हरी शैवाल और काई पानी को साफ करने में मदद करते हैं। इसके अलावा मोलस्क और छोटे कीड़े भी पानी को साफ करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इस प्रणाली में बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती और यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। नीला हौज में प्रतिदिन लगभग दस लाख लीटर सीवेज का बदबूदार काला पानी, साफ, स्वच्छ और पारदर्शी पानी में बदला जा रहा है। सीवेज के उपचार के लिए, ये एक पारिस्थितिक और पर्यावरण के अनुकूल कार्यप्रणाली है, लेकिन क्या इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर दोहराया जा सकता है? नई दिल्ली के मध्य में जैव विविधता के इस छोटे से जलीय आश्रय का निर्माण करने वाले, दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का मानना है, कि इसे कहीं भी दोहराया जा सकता है। यह तरीका 2016 से काम कर रहा है।

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