Rice: From Evolution to Revolution (H)

भारतीय कृषि से हर साल 130 करोड़ से ज्यादा नागरिकों का भरण पोषण होता है, लेकिन हमारे देश का ज्यादातर कृषि उत्पादन, इस लक्ष्य से कहीं ज्यादा है। आजादी के बाद के दशकों में, भारत दुनिया भर के खाद्यान्नों, सब्जियों और फलों के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक बन गया है। न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण जीवन निर्वाह के साथ ही पसंदीदा खाद्य पदार्थों में से एक, चावल का वैश्विक उत्पादन 50 करोड़ टन होता है। इसमें से 12 करोड़ टन यानी लगभग 24 प्रतिशत भारत में उगाया जाता है। और भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ उपभोक्ता भी है। हमें दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक होने का गौरव हासिल है। ये उपलब्धि, भारत के कुछ प्रमुख कृषि वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थानों जैसेकि आईएआरआई यानी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की निरंतर कोशिशों के कारण मिल पाई है। ये संस्थान चावल की ऐसी, नई उच्च उपज देने वाली किस्मों को लगातार विकसित करने पर काम कर रहा हैं, जो विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु में पनप सकती हैं। विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस एपिसोड में हम आईएआरआई के परिसर का दौरा करेंगे- इस शोध संस्थान ने भारत को खाद्य और पोषण सुरक्षा हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, दरअसल आईएआरआई 60 के दशक में भारत की हरित क्रांति के केंद्र रहा है - तब से आज तक आईएआरआई ने अच्छी पैदावार देने वाली चावल और अन्य फसलों की कई मेगा किस्मों को विकसित करने की विरासत को जारी रखा है। ऐसी फसलें किसानों को ज्यादा आय देती हैं और निर्यात से होने वाली भारत की आय में वृद्धि करती हैं। चलिए, इस एपिसोड में हम चावल की कुछ नई किस्मों पर बारीकी से नज़र डालेंगे और देखेंगे, कि वो किस प्रकार हमारे कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कड़ी मेहनत से विकसित की जाती हैं, जैसे कि, बासमती मेगा चावल की किस्म, पूसा 1121, जिसे दुनिया के सबसे लंबे पके हुए चावल का गौरव हासिल है, हम अनाज और अन्य उच्च उपज देने वाली पूसा बासमती 1509 और 1718 किस्मों को भी देखेंगे। इनकी खेती लगभग 18 लाख हेक्टेयर में की जाती है- दरअसल आईएआरआई के महत्व का अंदाजा निर्यात के आंकड़ों से ही लगाया जा सकता है - प्रीमियम बासमती चावल से देश को सालाना लगभग 25000 करोड़ रुपये मिलते हैं। जबकि आईएआरआई की अन्य किस्में इसमें लगभग 80,000 करोड़ मूल्य के लगभग 50 करोड़ टन अनाज का योगदान देती हैं - इसके अलावा और काफी कुछ देखिए केवल विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस एपिसोड में।

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