Radio Astronomy (H)

इस वीडियो से हम रेडियो तरंगों के बारे में विस्तार से जान सकेंगे। 19वीं शताब्दी के आखरी दशकों में हम रेडियो तरंगों के बारे मे जान चुके थे। आकाश से आने वाली रेडियो तरंगों को पहली बार 1930 में अमरीकी इंजीनियर कार्ल जेन्स्की ने पकड़ा। कार्ल जेन्स्की युरोप और अमेरिका के बीच रेडियो टेलिस्कोप के प्रसारण में आने वाले शोर की छान बीन कर रहे थे। ये एक बड़ी खोज थी लेकिन उस समय खगोलविज्ञानियों ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। सन् 1938 में अमरीका के ही एक होम रेडियो आपरेटर ग्रोटे रेबेर ने खगोलीय पिंडों से निकलने वाली रेडियो तरंगों का पता लगाया। फिर जल्द ही आकाश में रेडियो टेलिस्कोपों की स्थापना हुई और आकाश में रेडियो स्रोत खोजे जाने लगे। आज रेडियो एस्ट्रोनाॅमी खगोल विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन कर उभरा है। रेडियो टेलिस्कोप ने 1960 मे पहली बार एक बहुत ही अनोखे पिण्ड की खोज की। इस पिण्ड को क्वासर यानि क्वासी स्टेलर रेडियो सोर्सेज कहा गया। रेडियो टेलिस्कोप से हमारी आकाशगंगा के केन्द्र के बारे में बहुत सी नई जानकारियां मिली। बहुत सी दूर स्थित मंदाकिनियां भी रेडियो तरंगें छोड़ती हैं जिनसे हमें उनके स्वरुप के बारे में जानकारियां मिल रही है। क्रेब नेबुला एक बहुत ही शक्तिशाली रेडियो स्रोत हैं। रेडियो तरंगों की लम्बाई कुछ मिलिमीटर से लेकर कई सौ मीटर तक होती है। लेकिन दूरबीनों का निर्माण कुछ मिलीमीटर से करीब 20 मीटर लम्बाई तक की रेडियो तरंगों को ग्रहण करने के लिए किया जाता है। पूणे से 80 किमी दूर नारायण गांव में स्थित जीएमआरटी यानी जाइंट मीटर वेव रेडियो टेलिस्कोप रेडियो तरंगे प्राप्त करने वाली संसार की सबसे बड़ी रेडियो दूरबीनों में से एक है। अब तो दूरबीनों को अंतरिक्ष में स्थापित कर धरती के वातावरण से बाहर ब्रह्माण्ड से आने वाली अन्जान तरंगों को पकड़ कर उनके अध्ययन से ब्रहांड की रहस्यमयी घटनाओं को समझा जा रहा है।

Related Videos