Pluto and other Trans-Neptunian Objects and Comets (H)

इस कड़ी में प्लूटों और नेप्च्यून से परे अन्य खगोलीय पिंड़ों और धूमकेतुओं के बारे में बताया गया है। नेप्च्यून से परे खगोलीय पिंड़ों की खोज करने वालों में अमेरिकी खगोलविज्ञानी लॉवेल प्रमुख थे। उनके अनुसार सौरमंडल के बाहरी छोर पर एक ग्रह है जिसे उन्होंने ‘प्लानेट एक्स‘ नाम दिया था। सन् 1894 में उन्होंने लॉवेल वेधशाला बनायी। लेकिन अपनी मृत्यु तक उन्हें इस कार्य में सफलता नहीं मिली। उन्होंने अपनी वसीयत में नए ग्रह की खोज के लिए लॉखों डॉलर की राशि रखी। उनके इस कार्य को टॉमबग ने आगे बढ़ाते हुए 1930 में एक नए खगोलीय पिंड को खोजा। जिसे उस समय प्लूटो ग्रह का नाम दिया गया। यह पिंड सूरज से करीबन 600 करोड़ किलोमीटर दूर था जिसका व्यास 2274 किलोमीटर था। सौरमंडल में इसका कक्षा सबसे अधिक अंडाकार था। जब प्लटो सूर्य के सबसे करीबन होता है उस समय प्लूटो पर वातावरण बहुत पतला और मिथेन, नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है लेकिन जैसे-जैसे वो सूरज से दूर जाता है तब इसका तापमान कम होने लगता है। 2006 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलिय यूनियन की 26वीं महासभा में सर्वसम्मति से प्लूटों से ग्रह होने का रुतबा छीन लिया गया और उसे बौना ग्रह वर्ग में शामिल किया गया। मौते तौर पर पुंच्छल तारे बर्फ की गंदी गेंद जैसे होते हैं और सूरज का चक्कर लगाते रहते हैं। असल में ये पानी, धूल और अन्य गैसों का जमा हुआ मिश्रण होते हैं जो सूर्य का चक्कर लगाते हैं। ये ज्यादातर समय सौर मंडल के अंधेरों में बिताते हैं मगर जब वो सूर्य के पास होते हैं तो नजारा देखने लायक होता है। अक्सर पुच्छल तारे की पूंछ एक करोड़ किलोमीटर तक लंबी होती है। पुच्छत तारे की पूंछ हमेशा सूर्य से उल्टी दिशा में होती है जब पुच्छल द्वारा छोड़े गए धूल और गैस के कण पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते हैं तो घर्षण के कारण जल उठते है और इससे आकाश में शानदार नजारा दिखायी देता है इसे उल्कापात भी कहते हैं।

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