India’s Tryst with Genetic Engineering (H)

भारत ने 2002 में, जीएम कपास या बीटी कपास जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का उत्पादन शुरू किया, तभी से भारत के कपास उत्पादन में वृद्धि होने लगी है और पिंक बॉलवर्म जैसे विनाशकारी कीटों को नियंत्रित करने में, कीटनाशकों की खपत में भी नाटकीय रूप से कमी आई है। उस शुरूआती सफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने बीटी बैंगन को अपनाना चाहा, लेकिन तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्री ने इस पर रोक लगा दी। आज दिल्ली विश्वविद्यालय में विकसित जीएम सरसों को, प्रोफेसर दीपक पेंटल अपनी प्रयोगशालाओं में विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में खाद्य तेलों की काफी कमी है। खाद्य तेलों को फाफी मात्रा में आयात किया जाता है। तो क्या जीएम सरसों की शुरूआत होने से भारत में खाद्य तेलों का आयात कम होगा? आज जीएम फसलें, कई फ्लेवर, पुरानी गुणवत्ता के साथ आनुवंशिक परिवर्तन, जीन एडिटिंग और क्रिस्पर कास में उपलब्ध है। खाद्य फसलों के रूप में जीएम फसलों की शुरूआत पर काफी मतभेद हैं और इस पर अक्सर बहस होती रहती है, लेकिन अपनी बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए, भारत को जीएम खाद्य फसलों को सुरक्षित रूप से अपनाने का जोखिम उठाना ही होगा। आज कोविड -19 महामारी के दौरान, उपयोग किए जा रहे कई टीके पूरी तरह से जीएम उत्पाद हैं, और हम लोगों ने इन्हें पूरी तरह से स्वीकार भी किया है। तो क्या भारत के लिए, अपनी विशाल आबादी का भरण पोषण करने के लिए, जीएम फसलों को अपनाना ही एक मात्र उम्मीद है? 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले भारत के लिए, कृषि भूमि का विस्तार संभव नहीं हैं, इसलिए कम लागत में ज्यादा उत्पादन वाली कृषि ही, इसका शायद एकमात्र स्थायी समाधान है।

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