India's Genomics Mission (H)

1953 में, इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के दो माइक्रोबायोलॉजिस्ट जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रीक ने डीएनए संरचना की खोज की, डीएनए एक ऐसा रसायन है, जो लगभग सभी जीवों के निर्माण और उनकी प्रतिकृति बनाने के लिए निर्देशों को एन्कोड करता है। इस खोज ने 20वीं शताब्दी में विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी और "नए जीव विज्ञान" के युग को संभव बनाया - जैसेकि जीनोमिक्स या जीन का अध्ययन, जैव प्रौद्योगिकी और हाल ही में मानवीय आनुवंशिक खाके को समझना। जीवन के इन बिल्डिंग ब्लॉक्स की गहरी समझ, मानवता के सामने आने वाली चुनौतियों का जवाब जानने में मदद करती है - ये ऐसे जवाब हैं, जो हमें बीमारियों का इलाज खोजने में मदद कर सकते हैं, जिनमें कोविड -19 जैसे वायरस की प्रकृति तथा पौधों और जानवरों की बीमारियों के कुछ नाम शामिल हैं। भारत ने जीनोमिक अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रभावशाली ट्रैक रिकॉर्ड भी विकसित किया है। हालाँकि, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, कैंसर जैसे क्षेत्रों में जीनोमिक अनुसंधान के बढ़ते दायरे, मधुमेह जैसे वंशानुगत रोगों से लेकर, कोविड 19 जैसे वायरस के अनुक्रमण के लिए एक रोडमैप और एक अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करने के मिशन पर काम कर रहा है। इस सिलसिले में, विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत के इस एपिसोड में हम, पुणे के (एनसीएमआर) यानी राष्ट्रीय सूक्ष्मजीव संपदा केन्द्र की यात्रा करते हैं, जो कि राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केन्द्र का एक अगं है, हम भारतीय विज्ञान संस्थान में बेंगलुरु के सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च, और डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केंद्र - हैदराबाद में, उन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं से मिलते हैं, जो जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट, ह्यूमन माइक्रोबायोम इनिशिएटिव और नेशनल जीनोमिक कोर, जैसे जीनोमिक अनुसंधान कार्यक्रमों में भारत को अग्रणी बनाने की दिशा में कुछ प्रमुख कार्यक्रमों पर काम कर रहे हैं।

Related Videos