Dr K Kasturirangan’s Space Odyssey - (H)

खगोल भौतिकविज्ञानी डॉ. के कस्तूरीरंगन ने खगोल विज्ञान के शोधकर्ता, इसरो के पूर्व अध्यक्ष, संसद सदस्य और नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने वाली समिति के प्रमुख के रूप में दायित्वों का निर्वाह किया है । लेकिन उनकी सबसे खास बात ये रही, कि उन्होंने 1999 में भारत के इंटर प्लानेटरी मिशन की नींव रखी, जिससे भारत चंद्रमा पर एक मिशन की शुरूआत कर सका। जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III की परिकल्पना उन्हीं के सक्षम नेतृत्व में की गई थी। और उस परिकल्पना का परिणाम था — चंद्रयान - 1, ये चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन था, जिसने चंद्रमा के उस इतिहास को बदल दिया, जिसे हम जानते थे। चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज, डॉ. कस्तूरीरंगन की दूरदर्शिता का ही नतीजा थी। यहां तक कि उस समय भी, उन्नत राष्ट्र भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा नहीं करते थे, और न ही उनमें हमारी प्रौद्योगिकी को मान्यता देने का भाव था । ऐसे में डॉ. कस्तूरीरंगन ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के साथ चंद्र मिशन में भागीदार बनने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया और उनके उपग्रहों को चंद्रमा तक ले गए। हाल ही में डॉ. कस्तूरीरंगन ने नई शिक्षा नीति को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अब वे नए पाठ्यक्रम का खाका तैयार कर रहे हैं। वे रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े हैं, इस संस्थान की स्थापना, विज्ञान में भारत के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर सी वी रामन द्वारा की गई थी। हम यहां सी वी रामन द्वारा हासिल किये गए, स्वर्ण पदक के दर्शन करते हैं, इसी के साथ हम ये जानने का प्रयास करते हैं, कि विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार, पिछले नब्बे से ज्यादा वर्षों से, भारत की झोली में क्यों नहीं आ सका। क्या नई शिक्षा नीति इस क्षेत्र में नोबेल का सूखा खत्म करने में मदद करेगी। डॉ. कस्तूरीरंगन ने कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है, उन्होंने हमसे भारत के नेताओं के साथ काम करने के अपने अनुभव साझा किए। हाल ही में उन्होंने अपनी आत्मकथा 'स्पेस एंड बियॉन्ड: प्रोफेशनल वॉयज ऑफ के. कस्तूरीरंगन' भी प्रकाशित की है।

Related Videos