Advanced Semi-conductors - (H)
"लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सेमी-कंडक्टर का उपयोग होता है और उनमें से ज्यादातर सिलिकॉन आधारित सेमी-कंडक्टर होते हैं। भारत ने सेमी-कंडक्टर का एक पूर्ण, पारिस्थितिकी तंत्र बनाने और इनका निर्माण करने के लिए अरबों रूपये के भारतीय सेमी-कंडक्टर मिशन की घोषणा की है। सेमी-कंडक्टर का एक अन्य अधिक उन्नत वर्ग भी है, जिसे कंपाउड सेमी-कंडक्टर कहा जाता है, जिसमें एक से अधिक तत्वों का उपयोग करके चिप्स बनाई जाती हैं और इसलिए डब्बड कंपाउंड सेमी-कंडक्टर कहते हैं। भारत ने सेमी-कंडक्टर के क्षेत्र में भारी निवेश किया है, जिसमें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की सहयोगी प्रयोगशाला, ठोसावस्था भौतिकी प्रयोगशाला शामिल है। नई दिल्ली में स्थापित यह सुविधा वास्तव में एक छिपा हुआ रत्न है और इसमें फैब कल्चर के लिए एक पूर्ण प्रयोगशाला है। यह प्रयोगशाला सिलिकॉन कार्बाइड, गैलियम आर्सेनाइड, गैलियम नाइट्राइड जैसे, सभी बहुमूल्य सेमी-कंडक्टर पर काम करती है, यह सुविधा विभिन्न उपकरण, इन्गट के बेसिक कच्चे माल से लेकर चिप्स निर्माण और उपकरणों को बनाने में माहिर है। कंपाउंड सेमी-कंडक्टर बनाने में बेहद कठिन और महंगे हैं, लेकिन इनका उपयोग भारत के विशेष सामरिक उपकरणों में होता है। इस प्रयोगशाला की एक खूबी ये भी है कि इसकी निदेशक एक महिला हैं, और इसे न केवल भारत की, बल्कि दुनिया की सबसे अच्छी सुविधाओं में से एक माना जाता है। यह भारत की रक्षा और सामरिक जरूरतों को पूरा करती है, इसलिए इसका काम लोगों की नजर में कम ही आता है। ये प्रयोगशाला सेमी-कंडक्टर डायोड और लेजर पर भी काम करती है। डीआरडीओ की इस सुविधा में कई साफ-सुथरे कमरे और डिज़ाइनर चिप्स बनाने के लिए एक अनुसंधान और विकास निर्माण सुविधा भी है। यहां एक भविष्यवादी परियोजना पर काम चल रहा है, जिसमें ऑडियो और टेक्स्ट आधारित डेटा संचारित करने के लिए लेजर बीम का उपयोग करने की कोशिश की जा रही है, जिसका उपयोग पनडुब्बियों के साथ संचार करने में हो सकता है। भारत कंपाउंड सेमी-कंडक्टर के अनुसंधान में अग्रणी है, अपनी स्थापना के 60 वर्षों में इसने इस अत्याधुनिक क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से बेहतरीन प्रदर्शन किया है।"