A Tiny Defence LabTurns Saviour-(H)

ऐसी रक्षा प्रयोगशालाएं, जिनके बारे में हमने ज्यादा नहीं सुना, इन प्रयोगशालाओं ने, भारत को कोविड -19 महामारी के सबसे घातक दौर में बचाया है। कोविड-19 महामारी के दौरान, कई रक्षा प्रौद्योगिकियां काफी काम आईं। महामारी के शुरूआती दौर में, जब वेंटिलेटर की भारी कमी थी, उस समय, रक्षा जैव प्रौद्योगिकी और विद्युत चिकित्सकीय प्रयोगशाला (डीईबीईएल), बेंगलुरु द्वारा विकसित तकनीक ने, इस कमी को दूर करने के लिए, भारतीय उद्योग स्कैनरे की मदद की। लोगों के लिए अनजान सी इस छोटी सी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने, लॉक डाउन के बढ़ाये जाने के दौरान भी, भारत को जरूरी समाधान उपलब्ध करवाने के लिए अथक परिश्रम किया। महामारी से लगभग दो दशक पहले, वेंटिलेटर विकसित करने की तकनीक में महारत हासिल की और यह काफी काम आया। जब मेडिकल ऑक्सीजन की कमी थी, तो भारतीय लड़ाकू विमान तेजस के लिए विकसित ऑक्सीजन जनरेटर को, अस्पतालों की मदद के लिए मॉडिफाई किया गया। इसके बाद जब बड़े पैमाने पर चिकित्सा ऑक्सीजन संयंत्रों की आवश्यकता पड़ी, तो डीईबीईएल में तैयार किए गए घटकों की मदद से तरल ऑक्सीजन संयंत्रो को विकसित किया गया, जिससे भारत में काफी लागों की जान बचाई जा सकी। डीआरडीओ ने सैकड़ों मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने में मदद की। इस तरह रक्षा प्रौद्योगिकियां हमारा जीवन बचा रही हैं।

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