27 March 2022 - Small Hydropower Plants: Optimizing India's Energy Mix (H)

जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन की वजह से बिगड़ते जलवायु संकट के मद्देनजर, अब दुनिया के लिए ऊर्जा के पर्यावरण के अनुकूल और स्थायी स्रोतों को अपनाना जरूरी हो गया है। भारत ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को अपनाने की दिशा में सबसे आगे है और भारत की बिजली उत्पादन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जलविद्युत एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पूर्वोत्तर राज्यों में उनकी पहाड़ी स्थलाकृति और तेज प्रवाह वाली नदियों की वजह से, देश में जलविद्युत की अपार संभावनाएं हैं। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा को मिलाकर, देश की कुल जलविद्युत क्षमता का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा इन राज्यों में है। अरुणाचल प्रदेश में, बड़े और छोटे पैमाने पर जल विद्युत के प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है, अगर इसके संसाधनों का कुशल उपयोग किया जाए, तो ये अकेला इस राज्य को देश की अर्थव्यवस्था में अग्रणी बना सकता है। अरुणाचल प्रदेश में 58000 मेगावाट की पनबिजली क्षमता है। ये राज्य इस क्षमता का दोहन करने के लिए, विभिन्न केंद्रीय सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के साथ काम कर रहा है। मेगा परियोजनाओं के तहत क्षमता के अलावा, राज्य में लघु, छोटे और सूक्ष्म जलविद्युत विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। राज्य सरकार इस क्षमता में किस तरह की संभावनाएं तलाश रहा है, इसे जानने के लिए हमारी इंडिया साइंस की टीम ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की, और भारत के कुछ दूर दराज और दुर्गम इलाकों में माइक्रो और लघु जल विद्युत संयंत्रों का दौरा किया। हमने दिरांग जिले के राहुंग गांव का दौरा किया, जो तीन 250 किलोवाट टर्बाइन द्वारा संचालित है। हमने रूपा जिले के जिगांव का भी दौरा किया, जहां 100 से अधिक परिवारों वाले दो गांव, अपनी बिजली की जरूरतों के लिए माइक्रो हाइड्रोपावर प्लांट पर निर्भर हैं। तो इस एपिसोड में हम क्रॉसफ्लो और फ्रांसिस टर्बाइन के कामकाज और छोटे माइक्रो और लघु जल विद्युत संयंत्रों के पीछे की तकनीक पर चर्चा करेंगे। हम गोल्डन जुबली बॉर्डर विलेज इल्यूमिनेशन प्रोग्राम के बारे में भी बात करेंगे, जोकि राज्य और केंद्र सरकार की एक संयुक्त पहल है, जो क्षेत्र के दूरस्थ हिस्सों को बिजली प्रदान करती है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ देखिए, विज्ञान से आत्मनिर्भर भारत में, केवल इंडिया साइंस पर।

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